‘शिक्षक से मिलिए’ अर्ली बर्ड द्वारा एक मासिक श्रृंखला है, जिसमें हम भारत भर के उन शिक्षकों के काम को पेश करते हैं जो पक्षियों और प्रकृति के आनंद को सक्रिय रूप से फैला रहे हैं। इस महीने के विशिष्ट शिक्षक मध्य प्रदेश के देवास के एक प्रकृति शिक्षक मनोहर पवार हैं। पर्यावरण संरक्षण में उनकी यात्रा पश्चिमी मध्य प्रदेश में सांप संरक्षण और अनुसंधान के साथ शुरू हुई। वह वर्तमान में फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी के साथ काम करते हैं।

An English translation of this interview can be found here.

हमें अपने बारे में कुछ बताइये। आप कहाँ से हैं और क्या काम करते हैं।

मेरा नाम मनोहर पवार है, मैं देवास, मध्य प्रदेश से हूँ। मैंने माइक्रोबायोलॉजी और जूलॉजी में अपनी शिक्षा पूरी की है, ये वो क्षेत्र हैं जो बचपन से ही आकर्षित करते रहे हैं। माइक्रोबायोलॉजी और जूलॉजी में मेरी शैक्षिक पृष्ठभूमि ने जीवन के सूक्ष्म और स्थूल पहलुओं का पता लगाने और समझने के लिए ज्ञान और कौशल से लैस किया है। इस नींव ने, बचपन के अनुभवों के साथ मिलकर, मुझे मेरे करियर के लिए एक स्पष्ट दिशा दी है। इन विषयों में मेरी रुचि सिर्फ़ अकादमिक विषय नहीं थी; यह प्रकृति के साथ मेरे आजीवन जुड़ाव का स्वाभाविक विस्तार था। स्थानीय रीति-रिवाजों और परंपराओं ने भी आज मैं जो हूँ उसे आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन सांस्कृतिक प्रथाओं ने मुझमें पर्यावरण को संरक्षित करने की जिम्मेदारी की भावना पैदा की।

मनोहर पवार

प्राकृतिक दुनिया के बारे में आपको क्या उत्साहित करता है?

छोटी उम्र से ही, मैं प्राकृतिक दुनिया के अजूबों की ओर आकर्षित था। मैंने अनगिनत घंटे ऐसे खेल में बिताए जो मुझे प्रकृति के करीब ले गए, जैसे कि तितलियों और ड्रैगनफ़्लाई की खोज करना, जिन्हें हमारी स्थानीय भाषा में “हेलीकॉप्टर” कहा जाता है। ये अनुभव सिर्फ़ खेल नहीं थे; ये जीवित दुनिया के बारे में अवलोकन और जिज्ञासा के मेरे पहले सबक थे।

बचपन की सबसे दिलचस्प यादों में से एक टिटहरी (टिटोडी) के प्रति मेरा आकर्षण है, एक पक्षी जिसे अक्सर बारिश की शुरुआत से जोड़ा जाता है। इन पक्षियों को देखना और उनके व्यवहार को समझना मुझे वन्यजीवों और पर्यावरण के बीच जटिल संबंधों के बारे में सिखाता है, जिससे जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी के विज्ञान में गहराई से जाने की इच्छा पैदा होती है।

जैसे-जैसे मैं अपने करियर में आगे बढ़ रहा हूँ, मैं इस नींव पर निर्माण जारी रखने के लिए उत्साहित हूँ, अपने कौशल का उपयोग करके माइक्रोबायोलॉजी, जूलॉजी और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्रों में काम करने के लिए प्रेरित किया |

पर्यावरण शिक्षा में आपकी दिलचस्पी कब और कैसे बनी?

अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, पर्यावरण संरक्षण की दुनिया में मेरी यात्रा किसी पारंपरिक नौकरी से शुरू नहीं हुई। इसके बजाय, आई आई टी मुबई में कुछ समय कार्य करने के बाद यह 2011 में पश्चिमी मध्य प्रदेश में साँपों के संरक्षण और अनुसंधान पर केंद्रित एक संगठन सर्प अनुसंधान संगठन में स्वयंसेवक बनने के कार्य से शुरू हुई और इसको सरीसृपों और पर्यावरण की आकर्षक दुनिया में मेरा पहला औपचारिक कदम प्रयास भी कह सकते है।

स्वयंसेवा एक महत्वपूर्ण अनुभव था जिसने सरीसृपों की अविश्वसनीय विविधता और जटिलता के बारे में मेरी जानकारी को बढाने का कार्य किया। क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम करते हुए, मैंने साँपों के व्यवहार, आवास संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र में इन जीवों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में व्यावहारिक अनुभव और ज्ञान प्राप्त किया। यह न केवल सीखने का अवसर था, बल्कि जीवन की परस्पर संबद्धता और जैव विविधता के संरक्षण के महत्व का गहरा एहसास था।

इस अनुभव ने प्रकृति के प्रति बचपन के आकर्षण को मजबूत किया और करियर बनाने की मेरी प्रतिबद्धता को मजबूत किया। सरीसृपों की दुनिया तो बस शुरुआत थी; इसने पर्यावरण और पारिस्थितिकी के विभिन्न पहलुओं में मेरे निरंतर अन्वेषण की प्रक्रिया की नीव रखी जो फाउन्डेशन फॉर इकोलॉजी सिक्यूरिटी में कार्य दौरान भी निरंतर जारी है ।

समुदाय के सदस्यों को पुनर्बहाली प्रशिक्षण | फोटो क्रेडिटः घनश्याम सैयाम

आप अपने काम से क्या हासिल करना चाहते हैं?

जैसे-जैसे मैं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में आगे जा रहे  हूँ, मेरी आकांक्षाएँ केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों या कैरियर के लक्ष्यों को प्राप्त करने के बारे में नहीं हैं। इसके बजाय, वे  बचपन में शुरू हुए एक दृष्टिकोण में गहराई से निहित हैं |यह कोई आसान काम नहीं है, लेकिन मेरा मानना ​​है कि लोगों, खासकर बच्चों को कम उम्र से ही प्रकृति से जोड़ना निस्संदेह उन्हें संवेदनशील बनाएगा। ऐसा करके, हम एक पारिस्थितिक रूप से स्वायत्त समुदाय बनाने की दिशा में काम कर सकते हैं जो संपोषित विकास (Sustainable Development) को प्राथमिकता देता है | हम एक ऐसी प्रणाली के बारे में सोचने की जरुरत है पारिस्थितिक जागरूकता मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच के नाजुक संतुलन को समझते हों और सचेत निर्णयों और कार्यों के माध्यम से इस संतुलन को बनाए रखने का प्रयास करे |

बच्चों के लिए पक्षियों और प्रकृति से जुड़ना क्यों ज़रूरी है?

छोटी उम्र से ही हर किसी को प्रकृति और अपने आस-पास के वातावरण के प्रति सच्ची चिंता होनी चाहिए। यह जागरूकता केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि हमारे जीवन का अभिन्न अंग होनी चाहिए। हम प्रकृति के साथ प्रतिदिन कई तरह से जुड़ते हैं, चाहे हमें इसका एहसास हो या न हो, और इस संबंध को बढ़ावा देना सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।

मंडला में युवाओं के साथ नियमित निगरानी कार्यक्रम के तहत शहरी तितली का आयोजन किया गया | फोटो क्रेडिटः मनोहर पवार

आप पर्यावरण शिक्षा में किन संसाधनों का उपयोग करते हैं? क्या कोई ऐसा तरीका है जो आपके लिए काम आया हो?

निसंदेह पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देने का भी लक्ष्य हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण हिस्सा है । विभिन्न पहलों और जन विज्ञानं परियोजनाओं के माध्यम से, व्यक्तियों को एक विकल्प के रूप में  सशक्त बनाने का प्रयास है जो भावी पीढ़ियों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं  इस तकनिकी युग में ज्ञान के स्त्रोत की कमी नहीं है लेकिन फिर भी प्रकति से लोगो का जुडाव कम होता जा रहा है | पिछले कुछ समय में, जन विज्ञानं आधारित परियोजनाए इस और एक सार्थक प्रयास साबित हुआ है जो प्रकृति को अपनी उंगलियों  के माध्यम से एक नया और ज्यादा जानकारी से भरा नजरिया या माध्यम देता है साथ ही यह कुछ हद तक आसान भी है जो मनोरंजन, जानकारी के साथ एक वैज्ञानिक पहलु भी प्रदान करता है |

आप को पर्यावरण शिक्षक के रूप में क्या कठिनाइयां आई हैं और उनका आपने कैसे सामना किया?

चुकि लोगो के इसके बारे में पता होता है की हमारे आसपास क्या चल रहा है और कुछ हद तक ये औपचारिक शिक्षा में बताया जाता है लेकिन स्थानीय स्तर ये ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है कि जो भी जानकारी हम दे  रहे है वो उनको अपने आसपास की प्रकृति से ज्यादा जुडाव महसूस कराए | जानकारी जानना और उनके साथ एक सम्बन्ध स्थापित करना हमेशा से एक चुनौती रहती है क्योंकि जब तक उस क्षेत्र की जानकारी के साथ सह सम्बन्ध  स्थापित नहीं होगा वो शायद उतना प्रभावी नहीं हो पायेगा |

विभिन्न नागरिक विज्ञान उपकरणों पर प्रशिक्षण | फोटो क्रेडिटः कलीम शाह

बच्चों के साथ पर्यावरण शिक्षा का कोई यादगार अनुभव बताईए। क्या आप कोई ऐसी घटना याद कर सकते हैं जिसने आप के स्वरुप को अकार दिया?

प्रकृति के बारे में जानकारी देना हमेशा से ही ज्ञानवर्धक पहलू रहा है। सबसे यादगार अनुभवों में से एक मंडला में तितली और अन्य जीव सर्वेक्षण पर कॉलेज के छात्रों के साथ काम करना था। यह अनुभव न केवल अपनी अनूठी अंतर्दृष्टि के कारण बल्कि छात्रों के उल्लेखनीय ज्ञान और रचनात्मकता को प्रदर्शित करने के कारण भी उल्लेखनीय है।

प्रकृति की प्रयोगशाला में, आश्चर्य अनंत हैं, और सीखने के अवसर विशाल हैं। इस विशेष सर्वेक्षण में मंडला क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता की खोज करना शामिल था, जिसमें तितलियों और अन्य जीवों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। जैसे-जैसे हम इस परियोजना में आगे बढ़ते गए, छात्रों के उत्साह और स्थानीय जीवों के बारे में उनकी समझ से लगातार चकित होता गया। 

इस अनुभव को वास्तव में विशेष बनाने वाली बात यह थी कि छात्रों ने विभिन्न प्रजातियों के नाम और विशेषताओं को याद रखने के स्थानीय तरीके को बताया। उन्हें स्थानीय वन्यजीवों की अच्छी समझ थी, जो अक्सर प्रजातियों की पहचान करने और उनके बीच अंतर करने के लिए स्थानीय रचनात्मक तरीके और पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करते थे। 

इस दृष्टिकोण ने न केवल उनके ज्ञान को प्रदर्शित किया बल्कि पर्यावरण के साथ उनके गहरे जुड़ाव को भी दर्शाया। इस अनुभव ने व्यावहारिक शिक्षा के महत्व और एक जीवंत कक्षा के रूप में प्रकृति के साथ जुड़ने के विश्वास को मजबूत किया। इसने संरक्षण प्रयासों में योगदान देने के लिए युवा पीढ़ी की क्षमता और कम उम्र से ही जैव विविधता के लिए जूनून को बढ़ावा देने में सहायक होगा ।

छोटे बच्चों के लिए पक्षी निरीक्षण। फोटो क्रेडिटः मनोहर पवार

क्या आपको पर्यावरण शिक्षा के बाद बच्चों में कोई फ़र्क नज़र आया?

वर्ष 2021 से, कॉलेज के छात्रों के साथ मेंटर के रूप में कार्य कर रहे  है, जहाँ मैंने उन्हें विभिन्न पर्यावरण परियोजनाओं और शोध अध्धयन के माध्यम से मार्गदर्शन दिया है। यह अनुभव अविश्वसनीय रूप से फायदेमंद रहा है, जिससे स्थानीय ज्ञान और वैज्ञानिक तथ्यों का  छात्रों पर पड़ने वाले परिवर्तनकारी प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप से देखने का मौका मिला। जब हमने पहली बार साथ काम करना शुरू किया, तो कई छात्र अपने स्थानीय पर्यावरण की बुनियादी समझ के साथ आए थे। उनके पास पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत थी जो उनके समुदायों में गहराई से निहित थी।

छात्रों में होने वाले परिवर्तनों में से एक प्रकृति में व्यावहारिक अनुप्रयोगों के साथ स्थानीय ज्ञान को जोड़ने की उनकी क्षमता में सुधार हुआ है। पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक अवधारणाओं के साथ जोड़कर, छात्रों ने पर्यावरणीय मुद्दों की अधिक समग्र समझ विकसित की है। इस एकीकरण ने उन्हें अपने अध्ययन और वास्तविक दुनिया की पारिस्थितिक चुनौतियों के बीच संबंधों को देखने के लिए सशक्त बनाया है।

जीबीबीसी के दौरान प्रकृति से जुड़ते ग्रामीण पक्षी प्रेमी। फोटो क्रेडिटः मनोहर पवार

आप अपने साथी शिक्षकों को क्या सन्देश देना चाहेंगे? या उनको जो पर्यावरण शिक्षा शुरू कर रहे हैं?

प्रकृति की सुंदरता हमें अप्रत्याशित तरीकों से आश्चर्यचकित करने और सिखाने की क्षमता है हर बार जब हम घर के बाहर कदम रखते हैं, तो हम खोज के अंतहीन अवसरों से भरी एक जीवंत कक्षा में प्रवेश करते हैं। चाहे वह तितली की उड़ान हो, पक्षी का गाना हो, या मकड़ी का जटिल जाल हो, ये सरल अवलोकन शक्तिशाली जानकारी के स्त्रोत के रूप में काम कर सकते हैं जो पर्यावरण के लिए गहरी समझ को भी बढ़ावा देते हैं। जो लोग अभी शुरुआत कर रहे हैं, जिसका सबसे आसान तरीका आप जहाँ रहते हैं, वहीं से सरल चीजों से शुरुआत कर सकते है । सार्थक प्रभाव डालने के लिए बहुत  उपकरण या बड़ी योजनाओं की आवश्यकता नहीं है प्रकृति के चमत्कार हमारे चारों ओर हैं, जिन्हें खोजा और समझा जाना बाकी है।

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